Friday 23 September 2011

कवना बात के सजा दिहल जा रहल बा माई-बाप के

माता पिता के अवहेलना कतई जाएज नईखे, ई बात पता ना आज के संतान काहे नइखे समझ पावत ! काल्ह हम अखबार मे पढनी कि कोर्ट के फैसला आइल ह कि माता-पिता के अगर अवहेलना भइल त सजाय होई ! ई त सुने मे बढिया लागल बाकिर एपर केतना अमल होई ई देखे वाला बात होई !
केतना अफसोस के बात बा कि जवना देश मे श्रवन कुमार जईसन पुत्र होत रहल ओही देश मे अब अइसनो बेटा – बेटी हो रहल बा जवन अपना माई-बाप के घर से निकाल बाहर करत बा दर-दर के ठोकर खाए खातिर ! हम पटना मे रहिले आ पटना के गाधी मैदान के चारो ओर भा स्टेशन के पास भा रोड पर अईसन हाल मे देखे के मिलत बा लोग कि खुद के भी शर्मिन्दा महसुश करे के परत बा ! जे आखिर एह लोग के का गलती बा ! ओमे केहू के बेटा मैनेजर बा त केहू के बेटा इंजिनियर बा ! सब लोग कही ना कही सेट बा !
अगर एह हाल खातिर गरिबि जिम्मेवार रहित त कुछ सोचल जा सकत रल ! लेकिन एतनो ना कि ओह माई-बाप के घर से निकाल देहल जाव ! काहे कि घर मे अगर बेटा बेटी के खाए के, रहे के घर बा माई बाप खातिर ना !
हालांकि बहुत हद तक पतोह लोग के भी हाथ रहेला ! माई-बाप के घर से निकाले मे ! उ लोग अपना ससुर आ सास के बुढा भईला पर कुछो ना समझेला आ जब ना तब ओकरा के उल्टा सिधा बोल के झरहेटत रहेला लोग ! उ सास- ससुर जतना हद तक सहे लायेक होला सहेला लोग आ ना त आपन इज्जत गुने आपन घर दुआर छोड़ द्स जाये पर विवश हो जाला लोग !
सोचे वाला बात ई होला कि एह परिस्थिति मे बेटा भी अपना माई-बाप के साथ ना दे के अपना मेहरारु के ही साथ देला लोग ! उ लोग भुला जाला कि इहे माई- बाप बचपन से पाल पोल के बाड़ा कईल जे अंगुरी पकर के चले के सिखवलस ओकरा के आज 1 टाईम के खाना तक खिला सकत ? उहे माई – बाप जे बचपन मे जब उ जाहा ताहा भागल फिरस त पीछा-पीछा घुम-घुम के खियावे लोग ! आज उहे बेटा अपना पत्नि के कहल मे रहत बा लोग आ माई-बाप के दुत्कार देत बा लोग ! पतोह लोग ई भुला जात बा कि उहो लोग कहियो बुढा होई ! आ ओहु लोग के बेटा पतोह घर से निकले पर मजबूर कर सकत बा !

Tuesday 20 September 2011

भोजपुरी भारती पत्रिका : एह पत्रिका के अगिला अंक प्रो0 वैद्यनाथ विभाकर स्म्रिति अंक प्राकाशित हो रहल बा !

भोजपुरी भारती पत्रिका : एह पत्रिका के अगिला अंक प्रो0 वैद्यनाथ विभाकर स्म्रिति अंक प्राकाशित हो रहल बा ! एह पत्रिका खातिर राउर रचना आमंत्रित बा ! जवन 15 अक्टूबर से पहिले चाही ! रउरा फोटो सहीत !

Wednesday 14 September 2011

भोजपुरी के एगो अनमोल हीरा के निधन

जो दर्द को ढालते रहे नगमो में,
सोज को साज में बदलते रहे,
दात दे उनको ये गमे दिनिया-
जो ज़ख्म खा के भी फूल उगलते रहे !
     गर्दिश के गांव में, पीड़ा के छांव मे, उदास सपनन के सोन जुही जो न हंस के जी सकलन ना रो के मर सकलन अईसने रंगीन हसीन आ गमगीन व्यक्तित्व के नाम रल पन्डित गणेश दत्त किरण ! उहां के भोजपुरी जगत के एगो अईसन चमकत सितारा रनी ह, जवन अन्धरिया भा अंजोरिया दुनो मे दुरे से चमकत रनी हं ! आज उ सितारा हमनी के बिच से जुदा हो गईल ! उहां के म्रित्यु से भोजपुरी साहित्य आ भोजपुरिया समाज के अपूर्णीय क्षति भईल बा !
     पंडित गणेश दत्त किरण जी के हम एह से जानत बानी कि उहां के हामरा बाबुजी प्रो0 वैद्यनाथ विभाकर जी के काफी करीब रहीं ! आ दोसर कारण ई बा कि हम भोजपुरी से जब अनार्स करत रहीं त उहां के किताब पढे के रहे ! तब से उहां के बारे मे जाने के मोका मिलल ! पंडित गणेश दत्त किरण जी भोजपुरी जगत के कलम के बल पर जवन आपन पहचान बनवलीं जवन उंच्चाई पवनीं ओह उंच्चाई पर पहुंचे खातिर बहुत मेहनत आ अपना जीवन में काफि संघर्ष भी कईलीं !
     उहां के देश आ विदेश दुनो जगहा भोजपुरी के परचम लहरवले बानीं ! उहां के भोजपुरी जगत के सबसे बरहन गायक भरत शर्मा व्यास जी के अपना गितन के माध्यम से एगो उच्चा मुकम दिलईनीं !
उहां के कईगो किताब के भी रचना कईनीं ! जवना में 'रावण उवाच' 'सति के श्राप' आदि बाटे ! जवना के हमरा पढे के मोका मिलल बा ! उहां के एक-एक गो किताब सहित्य के गहिराई के छुवले बा ! हर विद्या में उहां के माहिर रनी हं ! हम अपना तरफ से आ अपना भोजपुरी भारती संस्था के तरफ से दुआ करब कि भगवान उहां के आत्मा के शांति दीं ! अउर उहां के बारे मे इहे कहब –
बड़े गौर से सुनता था जमाना जिसको,
आज वही सो गये दास्ता कहते-कहते !    

Tuesday 13 September 2011

भोजपुरी लोक गीतन में जन्मोत्सव

भोजपुरी माटी के खुशबु भोजपुरी लोक गितन में पिरो-पिरो के भरल रहेला ! एकर रस-गन्ध मन के मोह लेला ! भोजपुरिया संस्कार के झलक भी भोजपुरी लोक गितन के माध्यम से देखे आ सुने के मिलेला ! हमनी के भोजपुरिया समाज में आम आदमी के दिल के अवाज़ जब स्वरबध हो के ओठ पर फुटेला त उ एगो गीत के रूप लेला ! जवना के लोक गीत कह के सम्बोधन कइल जाला !
हामरा ख्याल से लक गीत के जनम आदमी के जनम के साथहीं हो गइल रहे ! काहे कि आदमी जब काफि खुश भा गम मे होला त ओकरा मुह से दिल के आवाज़ निकलेला ! आ ई सब ओहु घरी होत होई ! ई अलग बात बा कि ओह घरी के गीत लिखित रूप में उप्लब्ध बहुत कम बा ! काहे कि ओह घरी लोग गा त देत रहे बाकिर लिख ना पावत रहे !
          भोजपुरी लोक गितन में कइगो विभेद होला ! एमे फगुआ, चइता, बारहमासा, संस्कार गीत, श्रम गीत आदि बाटे !
हम एजग चर्चा करब भोजपुरी लोक गितन मे जन्मोत्सव के ! संस्कार गितन के अनेक तरे के गीत आवेला जवना मे जन्मोत्सव भी आवेला !
          जन्मोत्सव के मतलब होला पुत्र जनम के अवसर पर जवन उत्सव मानावल जाला ! पुत्र जनम के अवसर पर माई-बाप के साथे-साथे पुरा परिवार के खुशि देखल बनेला ! एह अवसर पर कई तरह के कर्यक्रम के करे ला लोग !  
          हम एजग जन्मोत्सव के समय गावे वाला गीत आ भोजपुरिया आ भोजपुरिया लोगन मे कवना तरे जन्मोत्सव मानावल जाला ! एमे पहिला स्थान आवेला – सोहर के !
सोहर – पुत्र जनम के अवसर पर गावे वाला गितन के सोहर कहल जाला सोहिला अथवा मंगल गीत के अभियान एही गीत से होला ! पुत्र जनम के अवसर पर एह गीत के गावल जाला ! कहल गईल बा -  
बाजेला आनन्द बाधाव, महल उठे सोहर हो !
एकरा सम्बन्ध मे तुलसी दास जी भी रामचरित मानस मे लिखले बानी -
                                                          गावहीं मंगल मंजु बानी,
सुनी कलख कल ले लाजानी !



पुत्र जनम ना भईला से माहतारी द्रवित भाव से कहेली –
जईसे बन के कोईलिया बने-बने कुहुके ले हो,
ए रामा ओइसे जियरा हामार कुहुकेला एगो बालक बिनू हो!
सोहर के प्रधान विषय प्रेम ह ! एह में स्त्री के पुरुष से रति क्रिया, गर्भाधान, प्रसव पिरा, दाई के बोलावल आ पुत्र जनम के गीत गावल जाला ! एगो सोहर गीत मे कहल बा –
कपरा त हमरो टनकेला, ओदरा चिलकेला ए,
राजा दुनिया भईले अनसुन कवन कहीं कुसल ए  
     सोहर के बाद आवेला खेलावना गीत के ! ई गीत भी सोहर के समान पुत्र जनम के सुखद अवसर पर गावल जाला ! परंतु सोहर से एमे कुछ भिन्नता होला ! सोहर मे विशेष करके पुत्र जनम के पुर्व पीठिका के वर्णन रहेला ! बाकिर खेलावना गितन मे उत्तर पीठिका के वर्णन रहेला ! एहमे औरत हुलास मे बहुत कुछ मांगेली ! एगो गीत मे कहल बा -
जाहु तोरा ए भउजी होरिला होइहें,
तबे आइब तोरा अंगनवा !
कांठा भी लेबो, टीका भी लेबो,
लेबो सब सोना के गहनवा !
हालांकि ई दुर्भाग्य काहाई कि हमनी के समाज में खाली पुत्र जनम पर ही बाधावा बाजेला गीत मंगल होला सोहर होला बेटी के जनम पर ना !
भोजपुरिया समाज मे एगो अउर प्रचलन बा कि जब नाया दुलहिन के पहिला बेरा बेटा होला त दुलहिन के नईहर से पवरिया भेजल जाला ! उ पवरिया जब बेटी के ससुरल मे पहुचे लें त अपना एगो टीम के साथे ! ओमे एक जन औरत के रूप धारन कर लेलन आ बाकि लोग एगो गोल बानाके ढोलक झाल के साथे बाजावे गावे आ नाचे ला लोग ! गा-गा के फुआ, चाचा-चाची, दादा-दादी, सबका से अपना गीत के माध्यम से कुछ ना कुछ मंगेला लोग ! उ लोग लरिका के गोदी मे ले के खुब नाचेला लोग आ लरिका के राम जी घोषित करके घुम-घुम के गावे ला लोग -
कहवा में राम जी के जनम भयो हरि झुमरी,
अब कहवा मे बाजेला बधाव खेलब हरी झुमरी !
           आ एह खुशी के मोका पर पुरा घर परिवार, टोला मोहाला आ खुशि मे सरिक होला ! पवरिया लोग के लरिका के माई-बाबुजी दादी, चाची कुछ ना कुछ देला !
एहिंग अपना टोला मोहला के भी औरत लोग जुट जाली आ एगो गोल बाना के खुब मस्ती मे झुम-झुमके गावेली, बाजावेली आ नाचेली ! एगो गीत के बानगी देखीं-
धन-धन भग सोहावन, लिहल जनमवा नु हो,
ए बबुआ लाल भाईलें कुलवा के दीपक महलिया उठे सोहर हो !
          एह तरह से हमनी के भोजपुरिया समाज मे भोजपुरी लोक गितन के माध्यम से जन्मोत्सव के प्रचलन बा ! आ ई बरी धूम धाम से मानावल जाला !

Sunday 11 September 2011

भोजपुरी लोक गितन में जन्मोत्सव

भोजपुरी माटी के खुशबु भोजपुरी लोक गितन में पिरो-पिरो के भारल पुरल रहेला ! एकर रस-गन्ध मन के मोह लेला ! भोजपुरिया संस्कार के झलक भी भोज्पुरी लोक गितन के माध्यम से देखे आ सुने के मिलेला !  
Bhojapuree maatee ke khushaboo bhojapuree loka geetana me^ piro-piro ke bharala rahelaa ! ekara rasa gandha mana ke moha lelaa 1 bhojpuriyaa sanskaara ke jhalaka bhee bhojpuree loka gitana ke maadhyama se dekhe aa sun eke milelaa ! hamanee ke bhojpuriyaa saamaaja me aama aadamee ke dila ke aavaja svarabadha ho ke oTha para fuTelaa ta u ego geeta ke roopa lela ! javanaa ke loka geeta kaha ke sambodhita kaeela jaalaa !
Haamaaraa khyaala se loka geeta ke janama aadamee ke janame ke saa^the ho gaila rahe ! kahe ki aadamee jaba kafee khusha bhaa gama me^ holaa ta okaraa moo^ha se dila ke aavaaz nkalelaa ! aa e ohu gharee hota hoe ! e alaga baata baa ki oha gharee ke geeta likhita roopa me bahuta kama upalabdha baa ! kaahe ki oha gharee log gaa tad eta rahe baakira lika naa paavata rahe !
bhojapuree loka gitana me^ kaego vibheda holaa !   eme faaga, chaetaa, baarahamaasaa, sansakaara geeta, shrama geeta aadi baate !
          hama ejaga chaarchaa karaba bhojapuree lika geetana me^ janmotsava ke ! sanskaar gitana ke antargata aneka tare ke geeta aavela ! ekare antargata janmotsava bhee aavelaa !
          janmotsava ke matalaba bhaeela putra janama ke avasara para javana utsava maanaavala jaalaa ! putra janama ke avasara para maaee baapa ke saathe saathe puraa parivaara ke khushee dekhala banelaa ! eha avasara para loga kaee taraha ke karyakrama ke aayojana kaeela jaalaa !
hama ejaga janmotsava ke samaya gave vaalaa geeta aa bhojapuriyaa saamaaja me ketanaa tare ke rashma ke charchaa karaba ! javana nimnavata holaa –
1                   sohara – putra janama ke avasara para gaave vaalaa geeta ke sohara kahala jaalaa ! sohilaa athavaa mangala geeta ke abhiyaana ehee geeta se holaa ! putra janama ke avasara para eha geeta ke gaavala jaala ! kahala gaeela baa –
“ baajelaa aananda badhaavaa, mahala uthe sohara ho “
          ekaraa sambandha me tulasee daasa jee bhee raamacharita maanasa me likhale banee^ -
          “ gaavahi^ mangala manju baanee,
          suni kalakha kala ke laajaanee ! “
putra janama naa bhaeelaa se mahataaree dravita bhaava se kahelee –
“ jaisana bana ke koeliyaa bane-bane kuhuke le ho,
e raamaa oise jiyaaraa haamaara kuhukelaa
ego baalaka binoo ho ! “
sohara ke pradhaana vishaya prema ha, eha me^ stree ke purusha se rati kriyaa, garbhaadhaana, prasava piraa, daee ke bolavala aa putra janama aavala jaalaa ! ego sohara geeta me kahala baa –
“ kaparaa ta hamaro tanakelaa, odaraa chilakelaa e,
Raajaa duniyaa bhaile^ anasuna kavana kahee^ kusala e ! “
Sohara ke baad aavelaa khelaavanaa geeta ke ! ee geeta bhee sohara ke saamaana putra janama ke sukhada avasara para gaavala jaalaa ! parantu sohara se eme kuchha bhinnataa baa ! sohara me visheSha karake putra janama ke purva peeThika ke varNana rahelaa ! baakira khelaavanaa gitana me^ uttara peeThikaa ke varNana rahelaa ! eha me^ aurata hulaasa me^ bahuta kuchh maangelee ! ego geeta me^ kahala baa –
“ jaahu toraa e bhaujee horilaa hoihe^,
Tabe aaiba toraa anganaavaa !
kanThaa bhee lebo, Tikaa bhee lebo,
lebo saba sonaa ke gaahaanavaa ! “
          hala^ki e durbhaagya kaahaae ki hamanee ke samaaja me^ khaali putra janama para hee baadhaava baajelaa geet mangala holaa sohara holaa betee ke janama para naa !
          bhojapuriyaa samaaja me ego aaura prachalana baa ki jaba nayaa dulahina ke pahilaa baara beta holaa ta dulahina ken aehara se pavariya bhejala jaalaa ! u pavariyaa jaba beti ke sasuraara me pahuchele ta aapana ego Tim kaa saathe ! u loga ego gola baanaake lagelaa loga Dholaka jhaala ke saathe naach-gaana kare laa loga ! ome eka jaanaa aurata bana jaalan aa u babuaa ke maae babujee fuaa, chaachaa, chaachee, daadaa- daadee sabakaa se apanaa geeta ke madhyama se kuchha naa kuchh mangelana ! u loga larikaa ke godee me leke khuba naache la loga aa larikaa ke raama jee ghosita kara ke ghuma ghuma ke gave la loga –
“kaahaavaa me^ raama je eke janama bhayo, haree jhumaree,
Aba kaahaa^vaa me baajelaa baadhaava khelaba haree jhumaaree”
          Aa eha khushee ke mokaa para puraa ghara parivaara tolaa maahaalaa saba juta jaalaa aa larikaa ke maae babubjee aa daadee saba loga kuchh na kuchh debe karelaa !
          Ehingatee apanaa tolaa mohaalaa ke bhee aurata loga juta jaalee aa ego gola baanaa ke khuba mastee me^ jhum-jhum ke gave li aa baajaaveli aa naachelee! Ego geeta ke banagee dekhee^-
“ dhana-dhana bhaga sohaavan, lihala janamavaa nu ho,
E babuaa laala bhaele^ kulavaa ke deepaka, mahaliyaa uThe sohara ho”
          Eha tare se hamanee ke bhojapuriyaa samaaja me bhojpuree loka gitana ke maadhyama se janmotsava ke dhooma machelaa aa khushee- khushee gaa gaa ke manaavala jaalaa !



Friday 9 September 2011

आतंक पर कुछ मुक्तक

1
करता घात ई बार-बार जान के,
अब त शबक सिखावे के परी !
सहल गईल ढेर अती अब एकर,
पटक के पानी पियावे के परी !
2
जियते ई लेत बाटे जान निर्दोश के,
चैन के निन्द नाहीं लेवे देत बाटे !
जब-जब हावा बहता भाईचारा के,
शांति से नाव नाही खेवे देत बाटे !
3
ढेर सह लेहनी अती, अब ना साहात बा,
आगे बा ठीक पिठ पिछे से काटात बा ,
मुआएब चाहें मुवेब, अब इहे इरादा बा -
चालावेला काटार अब हाथ कुबकुबात बा !

लोक नाटक उद्भव आ विकास

             नाटक साहित्य के सर्वोत्तम विधा ह ! सर्वोत्तम एह से कि ई द्रिश्य साहित्य ह! एकरा के देखलो जाला आ सुनलो जाला ! आंखि आ कान के माध्यम से एकर रस सहजता पूर्वक मन मष्तिष्क के प्रभावित करेला ! एहि से एकरा के चक्षुषक्रतु आ पंचम वेद कहल जाला ! रसिक लोग ' काव्येषु नाटक रभ्यम' कहिके एकर प्रतिष्ठा बढावेला !
             जईसे शिक्षा के आधार पर शिक्षित वर्ग आ अशिक्षित वर्ग के रूप मे वर्ग विभाजन होला ओसहीं शास्त्रीय ( शिष्ठ ) नाटक आ लोक नाटक के रूप में बाटवारा बा ! शास्त्रीय नाटक आचार्य लोग के तईयार कईल कसौटी के अनुरुप होलें, जबकि लोक नाटक लोक परम्परा पर आधारित ! दुनो मनोरंजन के साधन हवे ! दुनो मे नाटकीय तत्व होलें ! बाकिर शास्त्रीय नाटक अपना विषय के गुढता, भाषा के संस्कार आ मंचिय सम्पन्नता के कारण जाहां सम्पन्न आ सुरक्षित लोग के प्रिय होलें ओहिजा ग्रामीण संस्क्रिति, ग्रामीण भाषा, स्वभाविक शैली आ सहजतया प्राप्त मंचन सुविधा के कारण लोक नाटक आम आदमी के ! 
           विषय वस्तु के द्रिष्टि से लोक नाटक ' लोक ' आ ' नाटक ' के योग से भईल बा ! एहजा लोक के अर्थ जन बा ! ई जन भी सामान्य जन के बोधक बा ! काहे कि विषिष्ट जन के नाटक के जन नाटक भा अभिजत्य नाटक आदि कहल जाला ! लोक नाटक गांव-गंवई भा शहरो के अर्धशिक्षित जन से जुरल होला !
            दर असल ई विभेद अंग्रेजी साहित्य के " Folk-Drama " से आईल बा ! अंग्रेजी साहित्य के अध्येता भार्तीय लोग जब उहां फोक ड्रामा देखलस आ आपना किहां के रामलिला आ रासलिला, जात्रा भा जातरा, जट-जटिन, विदेशिया आदि के देखलें आ तुलना कईलें त बुझाईल जे ई भारतीय फोक ड्रामा ह ! तब जा के एकर नाया नाम लोक नाटक परल ! एकरा पहिले ग्रामीण खेले समझल जात होई ! 
            एह लोक नाटक के परिभाषा देखल जाव त डा0 श्याम परमार के अनुसार- " लोक नाट्य लोक रंजन के आडम्बर हीन साधन ह, जवन नागरिकन के मंच से अपेक्षाक्रित निम्न स्तर के, पर विशाल जन के हर्षोल्लास से सम्बंधित बा !" ग्रमीण जनता मे ई परम्परा कातना जुगन से चलि आवत बा ! चुकि लोक मे ग्रामीण आ नागरिक जन सम्मिलित बारें, एह से लोक नट्य एगो मिलल जुलल जन सामाज के मंच ह ! परिस्थितियन के अभाव मे इनका विकास के ठेस जरुर पहुंचल बा, बाकि एकरा गति के एक दम से रोकल ना जा सकल ! देश के घटना एकरा के प्रभावित जरुर करेलि सं! सामाज के प्रचलित भावना एकरा में रस संचार करेली सं आ लोक भाषा एकरा अभिव्यक्ति में चार चान्द लगा देली सं ! 
               श्री इन्दु बाला देवी के अनुसार- " जवना में निम्न श्रेणी के लोगन के रिति, रुढी अन्य विश्वास के सांथे लोक कथन के प्रदर्शन होला, उ लोक नाट्य ह !" डा0 राजवंश साहाय 'हीरा' के अनुसार- " नाटक के ऐसन रूप जवन जन साधारण के मनोरंजनार्थ रचल जाला आ ई नगर मंच से भिन्न स्तर के होला ! ई लोक के मनोरंजन के अक्रित्रिम माध्यम ह, जवना मे पात्र स्वभाविक आ लोक जीवन भा कवनो प्रव्रिति विशेष के प्रतिनिधित्व करेले !"
             डा0 नागेन्द्र के अनुसार- " लोक नाटक सामुहिक अवश्यकतन आ प्रेरणन के कारन निर्मित भईला से लोक काथानक, लोक विश्वासन आ लोक तत्व के समेतले रहेला आ जीवन के प्रतिनिधित्व करेला !
              लोक नाटक के अगर उद्भव आ विकास पर नजर दौरावल जाव त विद्वान लोग के विचार बा कि मानव के स्रिष्ति के साथ ही लोक नाटक के उद्भव भइल ! काहेकि मनुष्य संकेतिक आदि के माध्यम से अपन भावना राखे लागल ! ई भावना राखले आदि रूप ह ! फिर मनुष्य जइसे-तइसे चेतना के क्षेत्र मे विकसित होखे लगल आ सामाजिक संगठ्न मे आवे लगल ओइसे-ओइसे ओकरा मे मनोरंजन के भावना पनपे लागल आ उ मनोरंजन के साधन ढुढे लागल !
           बाकिर पश्चात्य विद्वान लोग नाटक के उत्पति कुछ दोसर प्रकार से मानता लोग ! डा0 रिजले के अनुसार- " एकर उत्पति म्रितक पूजा से भइल ! उंका अनुसार प्राचिन काल मे म्रितक विरन के आत्मा के प्रसन्न करे खातिर उनकर कार्यन के अभिनय कइल जात रहे !" डा0 पिशेल के अनुसार- " कठपुतली के नाच से एकर उत्पति भइल !" किथ के अनुसार- "रितु उत्सव मे होखे वाला लोक नाट्यन से एकर उद्भव भइल !
  

Friday 2 September 2011

प्रोत्साहन के जरुरी बा !

              शिक्षा मे प्रतिद्वन्दी बनल बढिया बात ह ! बाकिर बाकिर आपन प्रतिद्वन्दी जब आपना से पढे मे आगे निकल जाव त ओकरा के आपन पाराजय ना मान लेवे के चाहीं ! एक या दू सेमेस्टर में कम अंक अइला के मतलब ई ना भईल कि जिनगी से हार के आत्म हात्या कर लेहल जाव ! हामार कहनाम बा कि-
                                  मुश्किलें दिल के इरादों को आजमाती है,
                                  स्वप्न के परदों को निगाहों से हाताती है,
                                  हौसला मत हार गिर के ओ मुशाफिर -
                                  ठोकरें इंसान को चलना सिखाती है !

        आज हम सुबह उठनी ह, त आखबार मे पढनी ह कि इंजिनियरिंग के एगो छात्रा छ: मंजिल से कुद के जान दे देले बारी ! ई सही बात ना बा ! हामारा पाटना मे अइसन कईगो केस हो गईल ! हम सुझाव देम मा बाप के भी अपना संतान खातिर अपना मन मे से अगर कवनो नाकारात्मक विचार बा पाढाई खातिर उ निकाल के अपना लईकन के प्रोत्साहन देव !