Monday 29 August 2011

क्यों टूट राहा है गांव घर में रिश्ता

भारत एक गांवो का देश है ! और भारत की 70 % आबादी गांवो में बसती है ! हामारे देश की संस्क्रिति सारे विश्व में निराला है ! यह बात सारी दुनिया मानती है ! भारतीय संस्क्रिति की असली झलक गांवों में देखने को मिलती है ! इस सस्क्रिति को बानाये रखने के लिये लोग कुछ भी कर जाते है ! परन्तु यह विडम्बना ही कही जायेगी कि आज के इस आधुनिक युग में आज के युवा पीढि अपनी संस्क्रिति को भुलते जा रही है ! यह वही देश है जाहां पर पत्थर को भी लोग पुजते हैं ! और भगवान के आगे घंटो बैठ के जाप करते हैं ! लेकिन उसी देश में अब वैसे भी युवा और युवती हैं जो राह चलते दूर से ही भगवान को हाय हेल्लो बोलते हैं ! जिस हनुमान जी को लोग चलिसा का पाठ करके खुश करते हैं उसी देश में ऐसे भी भक्त हैं जो मन्दिर के दरवाजे से गुजरते हुए यह कहते हैं कि हाय हनु हाउ आर यू , फाईन ?
     हामारे देश में रिश्ता को भी बहुत आदर और सम्मान के साथ निभाया जाता है ! और बहुत दूर – दूर तक निभाया जाता है ! परंतु अब यह भी बदलते जा राहा है ! लोग अब अपनों से दूर हो के अकेला रहना चाहते हैं ! खाश कर शहरों में ज्यादा ! लेकिन आज भी गांवों में काफी हद तक रिश्तों की अहमियत कायम है ! आज भी गांवों के लोगों मे एक जुटता देखी जाती है ! जब हिन्दी महीना के अनुसार चईत के महीना आता  गावों के लोंग एक जगह जुट के चैता गाते हैं तो गावों के लोगों की एक जुटता देखते बनती है ! भोजपुरी क्षेत्रों में यह बहुत ही विशिष्टता के सांथ गाया जाता है ! इसके बाद आता है सबसे मदमस्त महीना फागुन का ! जिसमें बुढे से लेकर जावान तक बच्चा से लेकर सेयान तक महिला पुरुष सब एक रंग में घुल मील जाते हैं और सारे गिले शिकवे भुल कर गले मिल जाते हैं !
     परंतु गांवो में भी यह एक जुटता अब सामाप्त होते जा रही है ! आज की युवा पीढि अपने मा बाप को छोर कर अकेले रहना पसन्द कर रहे हैं ! वो पिता जिसने बचपन में अपने कन्धे पर बिठा कर ताजिये का जुलुस गावों मे लगने वाले मेलों को दिखाने लेकर जाया करते थे ! जो अपने पीठ पर बैठा कर घोरा बनते थे ! वो पिता जो छोटी- छोटी जिद को पुरा करने के लिये कुछ भी कर जाते थे ! वो पिता जब आज बुढे हो जाते हैं तो उनका बोझ एक महिने भी उनके बच्चे नही उठा पाते हैं ! वो मां जिसने अपने कोख में नव महिने तक रखा, जन्म के समय हर दूख दर्द को सहा, अपने भुखे रह बेटे को खाना खिलाने के लिये दिन – दिन भर बेटे के पीछे दौरती रहती उस मां को दो वक्त का रोटी खिलाने मे भी परहेज हो राहा है ! और अपने सुख सुविधा के लिये अपने घर, परिवार, भाई, बहन, चाचा– चाची, फुआ- फुफा, मामा-मामी सब रिश्तों  को पल में ठुकरा कर चल देते हैं ! मेरे ख्याल से इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं !
     इनमें स्त्रियों की भुमिका महत्वपुर्ण होती है ! काहा जाता है कि स्त्री घर की लक्ष्मी होती है ! पर कभी – कभी यही लक्ष्मी मंथरा और कैकेयी का भी रुप धारण कर लेती है ! जो एक मां को अपने बेटे से, एक बहन को अपने भाई से अलग करवा देती है ! वो भाई जो बचपन से साथ – साथ खेल कुदा पढा बढा उसका साथ भी, वह स्त्री जब पत्नी का रुप धाराण करती है तो छोरवा देती है !
     यह वह देश है जाहां पर भाभी को मा सामान समझा जाता था आज उसी देश मे भाभी देवर को लेके भाग जा रही है ! जो कि देवर दुसरे रिश्ते से बेटा भी होता है ! इस प्रकार मा बाप भाई बहान चाचा-चाची आदि से रिश्ते टुट जाते हैं  !
     दुसरा कारण यह भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति किसी को कामाते हुवे देख लेता है तो उससे उम्मीद से कुछ ज्यादा ही मांग बैठता है ! और जब देने वाला व्यक्ति असमर्थता जताता है तो वाहां भी रिश्ते मे खाटास आ जाती है ! और एक अच्छा खासा रिश्ता जो कि दोस्ती का हो या कोई और, पल भर मे टूट जाता है !
     हामारे देश में आज भी अतिथि को बहुत घरों में देव समझा जाता है ! पर अब यह स्लोगन कि अतिथि देवो भव: बिरले ही कहीं देखने को मिल राहा है ! हामारे इसी देश में भगवान अपना सिंहासन छोर कर अपने भिखारी मित्र से मिलने के लिये राज महल से महल के बहरी दरवाजे तक नंगे पांव निकल आये थे ! सिर्फ अपने दोस्ती के रिश्ते की मर्यादा को बनाये रखने के लिये ! परंतु अब दोस्ती के मायने बदल गये, वो दोस्त भी बदल गये ! अब अगर घर में कोई मेहमान आ जाता है तो लोग उसे जितना जल्द हो घर से भगाना चाहते हैं ! अब लोगों में अतिथि देवो भव: वाली भावना नही रही !
     हालांकी आज समय तेजी से बदल राहा है और आदमी जिवन की हर सुख सुविधा पाना चाहता है ! इसके लिये वो गांव घर से दूर शहर में जा कर पैसा कामाना पसन्द कर राहा है ! क्योंकि गावों मे अभि उतनी प्रगती नही हुई है कि आदमी ज्यादा पैसा कामा सके ! इस परिस्थिति में हर विवहित व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहना चाहता है ! परंतु परिवार का अर्थ लोग अपनी पत्नी और बच्चों को समझते हैं ! और वो भुल जाते हैं कि परिवार मा बाप भाई बहन दादा दादी सबको साथ मिलकर पुरा होता है !
     अत: हामारे युवा पीढि को रिश्तों की अहमियत समझना होगा ! पश्चिमी सभ्याता की आंधियों मे से बचना होगा और अपने घर परिवार, गांव समाज के रिश्तों कि अहमियत को समझना होगा !

                                                                यह लेख भोजपुरी से हिन्दी में रुपांतरित की गई है !  

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