Friday 9 September 2011

आतंक पर कुछ मुक्तक

1
करता घात ई बार-बार जान के,
अब त शबक सिखावे के परी !
सहल गईल ढेर अती अब एकर,
पटक के पानी पियावे के परी !
2
जियते ई लेत बाटे जान निर्दोश के,
चैन के निन्द नाहीं लेवे देत बाटे !
जब-जब हावा बहता भाईचारा के,
शांति से नाव नाही खेवे देत बाटे !
3
ढेर सह लेहनी अती, अब ना साहात बा,
आगे बा ठीक पिठ पिछे से काटात बा ,
मुआएब चाहें मुवेब, अब इहे इरादा बा -
चालावेला काटार अब हाथ कुबकुबात बा !

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